साथ-साथ, सात-सात
आसमान, लोक, समुद्र, द्वीप,
सुर, छंद और जनम
तुम्हारे साथ
सारी खुशियाँ, सारे ग़म
तुम्हारे साथ
तमाम दुर्गम रास्ते-पठार
नर्म दूब भरे मैदान हुए…
कठोर वन झाड़ियों में बनी पगडंडी
समुद्र की तैराकी
अंतरिक्ष की उड़ान
तुम्हारे साथ-साथ
कुछ भी नहीं कठिन,
सब आसान।
————–( शुचि मिश्रा, जौनपुर ) ———————-