हर मुमकिन कोशिश के बावजूद : शुचि मिश्रा | कविता | ShuchiMishraJaunpur

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खिड़की के बाहर
झाँकती है फूल सी बच्ची
बाहर झाँकते हैं
उसके सपने

कभी भी बंद हो सकते हैं
खिड़की के पट

द्वार खुलना ही चाहिए
बच्ची के लिए

बाहर आना है उसे
अपने सपनों के संग

घर में मुरझा ही जाते हैं
एक न एक दिन
हर मुमकिन कोशिश के बावजूद
फूल कहो या सपने।

————–( शुचि मिश्रा, जौनपुर ) ———————-

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