तालियाँ | कविता | शुचि मिश्रा | #ShuchiMishraJaunpur
वह तेज़…बहुत तेज़ दौड़ीलोगों ने तालियाँ पीटी बहुत तेज़ दौड़ते हुएवह बहुत तेज़ गिरीलोगों ने फिर तालियाँ पीटी महत्वपूर्ण था…
Poetry/ Writer, Jaunpur (U.P)
वह तेज़…बहुत तेज़ दौड़ीलोगों ने तालियाँ पीटी बहुत तेज़ दौड़ते हुएवह बहुत तेज़ गिरीलोगों ने फिर तालियाँ पीटी महत्वपूर्ण था…
जैसे पूरे ब्रह्मांड में एक सुराख़ खोजना हो जो किसी को न हो पता; ऐसा दरवाज़ा और खुल जाए वह…
पर्याप्त-अपर्याप्त, स्वादिष्ट और स्वादहीन जो भी है जनता की रोटी है न्याय दुर्लभ होती है जब; भूख होती है तब…
संपन्न घरों के बच्चों-सी हुई मेरी परवरिश गले में कॉलर बाँध माँ-पिता ने खूब ध्यान रखा लालन-पालन कर मुझे किया…
जो विकृत और कड़वे झूठ हैं तुम्हारे पासनि:संदेह उनसे तुम ग़लत दर्ज करोगे मेरा इतिहासधूल में मिला सकते हो तुम…
वह उठती है अलस्सुबहसुबह होने के पहलेकि उसी से होती है हर भोरचारों ओरफैलता है उजासजब वह उठती है तो…
आकाश दीखता है जितनाअनंत है उतनाअंतस में भी उतना ही अनंत आकाश एक तत्व है देह काअनंत भी हुआ एक…
आओ, समुद्र की लहरों पर स्केटिंग करेंउड़ान भरें एक शिखर से दूसरे शिखरनाप लें कदमताल करते धरती की परिधि आओ…
कविता की एक पंक्तिदूर तक फैली हैशांत-निस्तब्ध पंक्ति के साथ-साथविस्तृत होती हैरातसन्नाटा बुनते एकाकीपन कह रहा हैअपनी कथा-व्यथाखुद की आवाज़सुनते-गुनते।…
माँ आज भी जगाती हैसुबह सुबहचिड़ियो़ के चहचहाते हीएक गहरी नींद से माँ है तो सुबह होती हैमाँ के ना…