चुम्बन | कविता | शुचि मिश्रा | ShuchiMishraJaunpur
पेशानी परतुम्हारे होंठों केस्पर्श से जाना किछुआ जा सकता हैआत्मा कोइस तरह भी…..
Poetry/ Writer, Jaunpur (U.P)
पेशानी परतुम्हारे होंठों केस्पर्श से जाना किछुआ जा सकता हैआत्मा कोइस तरह भी…..
ख़त पढ़ने का मेरा तरीक़ा है यहसबसे पहले मैं दरवाजे़ पर ताला लगाती हूँऔर उसे खींचकर आश्वस्त होती हूँक्योंकि उसके…
एक लहर ले जाती है मुझेअपने संगनदी हो जाती हूँ मैं एक सुरसंगीत बनता हुआ खो जाता है एक शब्दऔर…
किसी भी दिन को याद कियातुम्हारा स्मरण हो आयागुनगुनाया कोई भी राग वह प्रेमराग हुआगाया जो भी गीत, हुआ प्रेमगीत…
आओ दु:ख के दुर्ग को ढँहाकर आओअश्रुओं से बना है यह दुर्गजिसमें रह रही हूँ इन दिनों यूँ देखने में…
जो असंभव थासंभव हुआ लगभगकि रात की नदीमौन साधे बह गई आया दबे पाँव सूरजखबर ही न हुईदिन के पसर…
वह तेज़…बहुत तेज़ दौड़ीलोगों ने तालियाँ पीटी बहुत तेज़ दौड़ते हुएवह बहुत तेज़ गिरीलोगों ने फिर तालियाँ पीटी महत्वपूर्ण था…
जैसे पूरे ब्रह्मांड में एक सुराख़ खोजना हो जो किसी को न हो पता; ऐसा दरवाज़ा और खुल जाए वह…
संपन्न घरों के बच्चों-सी हुई मेरी परवरिश गले में कॉलर बाँध माँ-पिता ने खूब ध्यान रखा लालन-पालन कर मुझे किया…
जैसे नमक के साथ रोटी खाना ठीक ऐसा ही है तुम्हें प्रेम करना ज्वर में जागना और चेहरे पर मारना…