रेखांकित करने वाली बात : शुचि मिश्रा | कविता | ShuchiMishraJaunpur
वह उठती है अलस्सुबहसुबह होने के पहलेकि उसी से होती है हर भोरचारों ओरफैलता है उजासजब वह उठती है तो…
Poetry/ Writer, Jaunpur (U.P)
वह उठती है अलस्सुबहसुबह होने के पहलेकि उसी से होती है हर भोरचारों ओरफैलता है उजासजब वह उठती है तो…
आकाश दीखता है जितनाअनंत है उतनाअंतस में भी उतना ही अनंत आकाश एक तत्व है देह काअनंत भी हुआ एक…
पलकें बंद करमैंने देखाउसेपूरे चाँद वाली रात मेंचुप-चुप वहताक रहा था चाँद एक मनुष्य केचकोर बन जाने की घटनाघट रही…
सामने तुम, देखती हूँ दिल के पर्दे परतुम प्रदीप्त, निहारती हूँ अपलक तुम्हेंआंखों में समा बंद करती हूं पलकगिरा लेती…
साथ-साथ, सात-सातआसमान, लोक, समुद्र, द्वीप,सुर, छंद और जनम तुम्हारे साथसारी खुशियाँ, सारे ग़म तुम्हारे साथतमाम दुर्गम रास्ते-पठारनर्म दूब भरे मैदान…
वह तेज़…बहुत तेज़ दौड़ीलोगों ने तालियाँ पीटी बहुत तेज़ दौड़ते हुएवह बहुत तेज़ गिरीलोगों ने फिर तालियाँ पीटी महत्वपूर्ण था…
देखते ही देखतेउमड़ घुमड़ कर आते बादलछा गए ऊपर देखते ही देखतेबरस गया पानीतृप्त हुई धरा देखते ही देखतेअंकुरित हुए…
भीतर आऊँ या न आऊँ? भ्रमित-सी हो गई हूँमैं तुम्हारी देहरी पर बावरी-सी हो गई हूँ। खींच लाई पीर जो…
मुझमें वितृष्णा होती तो मैंनेनफ़रत की होती आपसेबारहा लफ़्ज़ों के जरिएज़रूरी तौर पर भीकिंतु मुझे प्यार है आपसेऔर मेरे प्यार…
बहुत प्रभाव है उसकालगभग आतंक की शक़्ल में वह गुज़र रहा है सड़क सेकि गुज़र कर भी वहगुज़र न सकेगारह…