ख़त पढ़ने का मेरा तरीक़ा है यह | कविता : एमिली डिकिन्सन | अनुवाद : शुचि मिश्रा | #ShuchiMishraJaunpur
ख़त पढ़ने का मेरा तरीक़ा है यहसबसे पहले मैं दरवाजे़ पर ताला लगाती हूँऔर उसे खींचकर आश्वस्त होती हूँक्योंकि उसके…
Poetry/ Writer, Jaunpur (U.P)
ख़त पढ़ने का मेरा तरीक़ा है यहसबसे पहले मैं दरवाजे़ पर ताला लगाती हूँऔर उसे खींचकर आश्वस्त होती हूँक्योंकि उसके…
बाज ने अपना दोष कहाँ स्वीकारासंकोच का अर्थ नहीं जानता बाघपिरान्हा आक्रमण करते हुए शर्मिंदा नहीं होतीअगर होते साँपों के…
जैसे पूरे ब्रह्मांड में एक सुराख़ खोजना हो जो किसी को न हो पता; ऐसा दरवाज़ा और खुल जाए वह…
पर्याप्त-अपर्याप्त, स्वादिष्ट और स्वादहीन जो भी है जनता की रोटी है न्याय दुर्लभ होती है जब; भूख होती है तब…
संपन्न घरों के बच्चों-सी हुई मेरी परवरिश गले में कॉलर बाँध माँ-पिता ने खूब ध्यान रखा लालन-पालन कर मुझे किया…
जैसे नमक के साथ रोटी खाना ठीक ऐसा ही है तुम्हें प्रेम करना ज्वर में जागना और चेहरे पर मारना…
जो विकृत और कड़वे झूठ हैं तुम्हारे पासनि:संदेह उनसे तुम ग़लत दर्ज करोगे मेरा इतिहासधूल में मिला सकते हो तुम…
हे भगवन, जब मैं मर जाऊँगा तब तुम क्या करोगे?क्या हुआ जो टूट गया मैं एक प्याला ही तो हूँ…
मुझमें वितृष्णा होती तो मैंनेनफ़रत की होती आपसेबारहा लफ़्ज़ों के जरिएज़रूरी तौर पर भीकिंतु मुझे प्यार है आपसेऔर मेरे प्यार…
भविष्य अंतरिक्ष है वैसे पृथ्वी का रंग है जैसे जैसे गगन का रंग नीर और पवन का रंग स्याह है…