चुम्बन | कविता | शुचि मिश्रा | ShuchiMishraJaunpur
पेशानी परतुम्हारे होंठों केस्पर्श से जाना किछुआ जा सकता हैआत्मा कोइस तरह भी…..
Poetry/ Writer, Jaunpur (U.P)
पेशानी परतुम्हारे होंठों केस्पर्श से जाना किछुआ जा सकता हैआत्मा कोइस तरह भी…..
ख़त पढ़ने का मेरा तरीक़ा है यहसबसे पहले मैं दरवाजे़ पर ताला लगाती हूँऔर उसे खींचकर आश्वस्त होती हूँक्योंकि उसके…
एक लहर ले जाती है मुझेअपने संगनदी हो जाती हूँ मैं एक सुरसंगीत बनता हुआ खो जाता है एक शब्दऔर…
किसी भी दिन को याद कियातुम्हारा स्मरण हो आयागुनगुनाया कोई भी राग वह प्रेमराग हुआगाया जो भी गीत, हुआ प्रेमगीत…
आओ दु:ख के दुर्ग को ढँहाकर आओअश्रुओं से बना है यह दुर्गजिसमें रह रही हूँ इन दिनों यूँ देखने में…
पर्याप्त-अपर्याप्त, स्वादिष्ट और स्वादहीन जो भी है जनता की रोटी है न्याय दुर्लभ होती है जब; भूख होती है तब…
संपन्न घरों के बच्चों-सी हुई मेरी परवरिश गले में कॉलर बाँध माँ-पिता ने खूब ध्यान रखा लालन-पालन कर मुझे किया…
जैसे नमक के साथ रोटी खाना ठीक ऐसा ही है तुम्हें प्रेम करना ज्वर में जागना और चेहरे पर मारना…
जो विकृत और कड़वे झूठ हैं तुम्हारे पासनि:संदेह उनसे तुम ग़लत दर्ज करोगे मेरा इतिहासधूल में मिला सकते हो तुम…
हे भगवन, जब मैं मर जाऊँगा तब तुम क्या करोगे?क्या हुआ जो टूट गया मैं एक प्याला ही तो हूँ…