अस्तित्व में : शुचि मिश्रा | कविता | ShuchiMishraJaunpur

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पलकें बंद कर
मैंने देखा
उसे
पूरे चाँद वाली रात में
चुप-चुप वह
ताक रहा था चाँद

एक मनुष्य के
चकोर बन जाने की घटना
घट रही थी अस्तित्व में

चकोर जिसका कोई तंत्र या छंद नहीं था
स्वतंत्र और स्वच्छंद था वह
ताक रहा था बस चाँद

तरस रहा था
स्वाति बूंद को।

————–( शुचि मिश्रा, जौनपुर ) ———————-

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