माँ आज भी जगाती है
सुबह सुबह
चिड़ियो़ के चहचहाते ही
एक गहरी नींद से
माँ है तो सुबह होती है
माँ के ना रहने पर
रात ही रात होगी
सूरज को रश्मियों की गठरी
दी है माँ ने
जिसे बाँटता है वह
सारे जगत को
सूरज जानता है
कभी ख़त्म नहीं होती
माँ की दी हुई संपदा मुट्ठी भर
सूरज ज्यों-ज्यों बाँटता है
बढ़ती जाती है उसकी आभा
संसार को अपनी धूप
लेने की शिक्षा
सूरज से लेनी चाहिए
और माँ से ।
————–( शुचि मिश्रा, जौनपुर ) ———————-