आकाश दीखता है जितना
अनंत है उतना
अंतस में भी उतना ही अनंत
आकाश एक तत्व है देह का
अनंत भी हुआ एक घटक
आकाश को देखना
स्वयं को देखना है
आँखों में समा जाता है आकाश
देह नहीं समाती आँखों में
आँखों में आते हैं स्वप्न
आकाश जितने
अनंत जितने …|
————–( शुचि मिश्रा, जौनपुर ) ———————-