स्मृति की टोह ली
याद किया बचपन
घर-आँगन, नीम का पेड़
पनघट, गौशाला, खेत-मेड़
पगडंडी, रंग-अबीर
बसंत, वटवृक्ष, नदी-तीर
याद किया एक सादा जीवन
आंखों की रौशनाई से लिखें संस्मरण
संस्मरण से फूटी एक पगडंडी
जिसे मैं कविता कहती हूँ
अपनी पीड़ा संग लिए जिससे गुजरती हूँ
एक उम्मीद की लय के साथ रहती हूँ।
————–( शुचि मिश्रा, जौनपुर ) ———————-