आओ : शुचि मिश्रा | कविता | ShuchiMishraJaunpur

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आओ, समुद्र की लहरों पर स्केटिंग करें
उड़ान भरें एक शिखर से दूसरे शिखर
नाप लें कदमताल करते धरती की परिधि

आओ सरपट दौड़ें
मैदानों पठारों पर
थक जाएं
गिर जाएं
हरीतिमा को बना ले बिछौना
तुम मेरा तकिया हो जाओ
मैं तुम्हारा सिरहाना।

————–( शुचि मिश्रा, जौनपुर ) ———————-

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