कभी क़तरा, कभी नदिया बनी हूँ
मैं तेरे प्यार में क्या-क्या बनी हूँ
ये तेरे वास्ते दुनियाँ नहीं थी
मैं तेरे वास्ते दुनियाँ बनी हूँ
मेरी मिट्टी बगावत कर रही है
तेरी शौहरत का मैं चर्चा बनी हूँ
रज़ा हो या ना हो तामीर कर ले
मैं तेरे ख़्वाब का नक्शा बनी हूँ
तेरे किस्से का हिस्सा हो गई हूँ
किसी का अनकहा शिकवा बनी हूँ!
————–( शुचि मिश्रा, जौनपुर ) ———————-