संपन्न घरों के बच्चों-सी हुई मेरी परवरिश
गले में कॉलर बाँध माँ-पिता ने खूब ध्यान रखा
लालन-पालन कर मुझे किया बड़ा
मुझे सिखाया गया कि मैं दूसरों पर हुक़्म तारी करूं
और मैं रौब जमाऊँ उन पर
किंतु जैसे हुआ मैं समझदार
मुझे परिजन नहीं भाये
अच्छा नहीं लगा परिवार
खिदमत कराना, हुक्म देना, मुझे नहीं भाता
मैं निम्न श्रेणी के
लोगों में रमता अपनों से तोड़ नाता
एक विश्वासघाती को पाला इस भाँति
उन्होंने मुझे बनाया था एक चालबाज
जबकि खोल दिए मैंने शत्रुओं पर उनके राज़
जी हाँ, मैं खोल देता हूँ उनके राज़
कर देता हूँ उनकी ठगी का पर्दाफाश
क्या होने वाला है; यह बता देता हूँ पहले ही
जानकारी रखता हूँ योजनाओं की अंदरूनी
उनके भ्रष्ट विद्वान की संस्कृत बदल देता हूँ शब्दशः
आमफहम भाषा में दिखा देता हूँ उनकी गीता अक्षरशः
इंसाफ़ के तराजू पर कैसे डंडी मारते हैं, बता देता हूँ
और उनके मुख़बिर उन्हें ख़बर देते हैं कि
जब क्रांति की योजना बन रही होती है
तब मैं वहीं रहता हूँ मौजूद
चेतावनी दी थी उन्होंने मुझे
और जो कुछ कमाया था मैंने
उनके छिन जाने पर भी जब मैं ना माना
तब गिरफ़्तार करने आए वे मुझे
यद्यपि उन्हें कुछ न मिला मेरे घर से
उन पर्चों के अतिरिक्त जिनमें
जनता के खिलाफ़ उनकी करतूतें थीं
अतः मेरा वारंट जारी किया उन्होंने आनन-फानन
मैं तुच्छ विचारों का हूँ -ऐसा आरोप लगाया
यानी तुच्छ लोगों के विचार; यह आशय
जहाँ-जहांँ भी मैं जाता धनाढ्यों को अखरता
लेकिन उनमें जो होते खाली हाथ वाले
वह मेरा ही वारंट पढ़कर मुझे पनाह देते
कि यह अच्छी वजह से निष्कासित हुआ व्यक्ति है.
————–( शुचि मिश्रा, जौनपुर ) ———————-