वह उठती है अलस्सुबह
सुबह होने के पहले
कि उसी से होती है हर भोर
चारों ओर
फैलता है उजास
जब वह उठती है तो उठता है आस-पास
अड़ौस-पड़ौस
वह उठती है सूरज की किरणों के जाल फैलने से पूर्व
झाड़ा बुहारी कर देती है सदियों के घर आंगन में
साफ कर देती है धूल धौंसर
उसे पता है मवेशियों के कलेवा का समय
उसे पता है चिड़ियों के गान का अर्थ
उसे पता है पौधों के लहलहाने का हर्ष
उसे पता है कुँए में होती थ्वन्यात्मकता का आशय
उसे पता है घर की नींद पूरी होने के मानी
उसे पता है कि कब हो चाय-पानी
उसे याद रहता है साँस लेने की तरह
छोटे भाई बहनों को नहलाने का जिम्मा
दादा की आँखों में
हर पाँच मिनट में आईड्रॉप डालने की जिम्मेवारी
घर भर का खाना, बर्तन और कपड़े धोना
उसे पता है कि उसमें शामिल है
खुद के लिए समय ना निकाल पाना
सुबह की चाय पर पहाड़-सा दिन बिताना
उसे देखो वह छोटी नाजुक सी लड़की
इस समाज का हिस्सा और अजूबा है
उसे देखो कि मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री तक
उसे बचाने की कवायद कर रहे हैं
और एक सुर में चिल्ला रहे हैं नेतागण कि बेटी बचाओ
रेखांकित करने वाली बात है कि
भारत की यह बेटी नेताओं की नज़र से बचना चाहती है।
————–( शुचि मिश्रा, जौनपुर ) ———————-