देखते ही देखते
उमड़ घुमड़ कर आते बादल
छा गए ऊपर
देखते ही देखते
बरस गया पानी
तृप्त हुई धरा
देखते ही देखते
अंकुरित हुए बीज
पौधे पनपे
देखते ही देखते
पौधे जो हुए दरख़्त
लहराई पूषा, हर्षित हुई
देखते ही देखते
फिर वसुधा हो गई बूढ़ी
आसमान रूठ गया
बादल उमड़ घुमड़ कर चले गए।
————–( शुचि मिश्रा, जौनपुर ) ———————-