रिश्ते नाते
आते-जाते
दिखे इमारत से !
जिनके बनने में
लगता है अधिक समय
कि लोग रहे अनजान,
उन्हें पता क्या
भव्य इमारत
कैसे हुई महान?
कितना समय बिताया
जतन से इन्हें बनाया
इस पीड़ा को देख नहीं सकते
और किसी छत से!
दिखने में तो
अधिक भव्य लगते हैं
यह रिश्ते नाते,
पर इन्हें सहेजें
ऐसा हुनर
हम कहां सीख पाते?
कितने युग बीते
घाट सब नदिया की रीते
अनुभव से ही जान सकेंगे
ना किसी महंत मत से!
————–( शुचि मिश्रा, जौनपुर ) ———————-