हालात : शुचि मिश्रा | कविता | ShuchiMishraJaunpur

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खिड़की दरवाजे़ बंद हो गए
स्तब्ध रह गए लोग
कुछ झाँकने लगे बगलें
हकला गए निर्बाध धाराप्रवाह बोलने वाले

बस एक सच गुज़रा था शहर से
कर्फ्यू जैसे हालात हुए
ढँह गए आदर्शों के सारे दुर्ग।

————–( शुचि मिश्रा, जौनपुर ) ———————-

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