अस्तित्व में : शुचि मिश्रा | कविता | ShuchiMishraJaunpur
पलकें बंद करमैंने देखाउसेपूरे चाँद वाली रात मेंचुप-चुप वहताक रहा था चाँद एक मनुष्य केचकोर बन जाने की घटनाघट रही…
Poetry/ Writer, Jaunpur (U.P)
पलकें बंद करमैंने देखाउसेपूरे चाँद वाली रात मेंचुप-चुप वहताक रहा था चाँद एक मनुष्य केचकोर बन जाने की घटनाघट रही…
स्टीफन हॉकिंग ने कहाऔर सुना सारी दुनिया ने जी हां, स्टीफन हॉकिंग ने कहाअपनी ऐसी जुबान सेजो बुदबुदा सकती थी…
स्मृति की टोह लीयाद किया बचपनघर-आँगन, नीम का पेड़पनघट, गौशाला, खेत-मेड़पगडंडी, रंग-अबीरबसंत, वटवृक्ष, नदी-तीर याद किया एक सादा जीवनआंखों की…
सामने तुम, देखती हूँ दिल के पर्दे परतुम प्रदीप्त, निहारती हूँ अपलक तुम्हेंआंखों में समा बंद करती हूं पलकगिरा लेती…
एक नदी दूसरी नदी से मिलीऔर जा मिली सागर मेंएक हवा का झोका दूसरे से मिलाऔर बादल ले उड़ाएक सुगंध…
धीरे-धीरे रौशनी चली गईख़ुद चराग़ में ज्यूँचेतना गई ऐसे हीनिश्चेत के अज्ञात लोक में रात भर पड़ा रहाशरीर बेसुधतब भी…
खिड़की के बाहरझाँकती है फूल सी बच्चीबाहर झाँकते हैंउसके सपने कभी भी बंद हो सकते हैंखिड़की के पट द्वार खुलना…
साथ-साथ, सात-सातआसमान, लोक, समुद्र, द्वीप,सुर, छंद और जनम तुम्हारे साथसारी खुशियाँ, सारे ग़म तुम्हारे साथतमाम दुर्गम रास्ते-पठारनर्म दूब भरे मैदान…
वह तेज़…बहुत तेज़ दौड़ीलोगों ने तालियाँ पीटी बहुत तेज़ दौड़ते हुएवह बहुत तेज़ गिरीलोगों ने फिर तालियाँ पीटी महत्वपूर्ण था…
हमेशा सरल सवालों को हल किया पहलेबचते-बचाते रहे कठिन सेसोचा हल कर लेंगे बाद मेंपहले दे लें सरल सरल जवाब…