शुकदेव प्रसाद से मिलने : : शुचि मिश्रा | कविता | ShuchiMishraJaunpur

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इलाहाबाद का विज्ञान
यानी शुकदेव प्रसाद
छोटा बघाड़ा में स्थित मकान
वृक्षों से घिरा ज्यों अमराई के बीच प्रासाद
मेरे मन में जब तब गहराता
एक गहरा अवसाद
कि इलाहाबाद से जौनपुर की दूरी
मात्र सौ किलोमीटर
दो घंटे का सफर
जो उनके रहते पूरा न हुआ
टूट न सका उनकी ठसक का वलय
रह गई मिलने की आस अधूरी

शुकदेव प्रसाद से मिलना
यानि सवा सौ किताबों से गुजरना
माला भी एक सौ आठ में पूरी हो जाती
कितने मोती थे उनके हाथ में, मुट्ठी में
एक-एक कर देते गए पाठकों को

लिखा सिलसिलेवार विज्ञान का इतिहास
प्राचीन, मध्य और आधुनिक काल की विज्ञान यात्रा
त्रुटिविहीन ऐसी इबारतें
सजग रहते अल्पविराम-पूर्णविराम-मात्रा
जगाए और जिलाए रखते भीतर स्वाभिमान की लौ
जो बन जाती यदा-कदा चिंगारी

समकालीनों को लेते आड़े हाथ
बजता डंका हिंदी विज्ञान लेखन जगत में

करते संवाद : बतियाते फोन पर घंटों
अपने समकालीन और युवतम लेखकों से
उन्हें लताड़ते कभी ; देते सीख

इलाहाबाद का इलाका
छोटा बघाड़ा
वृक्ष से गिरा एक मकान
जिसे घर बनाने की
कोशिश में लगे रहे ताउम्र
जानते थे बखूबी कि घर बनता है परिवार से
और परिवार ?
सारा संसार था आपका

वृक्षों से घिरे इस मकान में एक कमरा
जिसमें घना हुआ किताबों का जंगल
बस उसी से घिरे रहते शुकदेव प्रसाद

इस जंगल में पहुंचना था मुझे
हिंदी के अप्रतिम विज्ञान लेखक से मिलने
अपने शहर जौनपुर को पार कर

जौनपुर से इलाहाबाद की दूरी
मात्र सौ किलोमीटर
दो घंटे का सफ़र
जो पूरा न हो सका उनके रहते

मुझे पहुंचना है शुकदेव प्रसाद से मिलने
सशरीर विदा हुए वे तेईस मई को
शुकदेव प्रसाद अब
एक इतिहास है, एक विचार है

अब पहुंचना है उन तक
जहां पहुंचे वे तूर पर
मुझे पहुंचना है
उनकी सवा सौ कृतियों से गुजर कर।

————–( शुचि मिश्रा, जौनपुर ) ———————-

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