( दादा जी को याद करते )
अब सुनहरे फ्रेम में उनकी तस्वीर जड़ी है
तस्वीर में वे उत्साहित दिख रहे हैं
बहते हुए पानी जैसे स्वर का दृश्य रच रही है उनकी मुस्कान
खिलते हुए फूल, उड़ती तितली और टिमटिमाते तारों सा जीवन जीते हैं
धीरे-धीरे उतर आते हैं
आसमान की सीढ़ी से घर की दहलीज़
तस्वीर एक दृश्य नहीं उनका होना है
हम उनके अवशेष, अतीत और इतिहास में जाते हैं
और पाते हैं कि हम भविष्य की यात्रा पर हैं
उनकी तस्वीर के आगे हमारा इतिहास और उनका भविष्य होता है
वे तस्वीर में साँस लेते हैं
और कहते हैं कि साँस लेने से ही बना है घर-परिवार
वे तस्वीर से निकल थोड़ा टहल आते हैं
और फिर लौटकर बतियाने लगते हैं
आसमान की सीढ़ी से घर की दहलीज तक |
————–( शुचि मिश्रा, जौनपुर ) ———————-