मिलो, जैसे मिलना ही चाहा हो
और मिलने के लिए आए हो दुनिया में
नदी,पर्वत, हवा, धूप, बादल से
फूल-पत्ती, चिड़िया और वनचरों से
मिलो समुद्र से अपनी प्यास लेकर
और अन्न से मिलो भूख के साथ अहोभाव से
एक मनुष्य से अपनी मनुष्यता के साथ मिलो
और स्वयं से मिलो निजता के साथ ।
————–( शुचि मिश्रा, जौनपुर ) ———————-