फर्क नहीं : शुचि मिश्रा | कविता | ShuchiMishraJaunpur

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वह अपने भीतर अलख जगाए हैं साहस का
वह साहसिक बातें करता है मित्रों से
नैराश्य की छाया भी नहीं छू पाती उसे
उसके उद्गार में साहस ही साहस है

वह बहुत भावुक रहता है कुछ दिनों से
जैसे पाश में हो किसी अनछुई कोमल अनुभूति के
या किसी षड्यंत्र की गिरफ्त में
वह हिम्मत भरे जुमलों में अब
दिल और सियासत में फ़र्क़ नहीं करता ।

————–( शुचि मिश्रा, जौनपुर ) ———————-

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