अर्थ | कविता | शुचि मिश्रा | ShuchiMishraJaunpur

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एक लहर ले जाती है मुझे
अपने संग
नदी हो जाती हूँ मैं

एक सुर
संगीत बनता हुआ

खो जाता है एक शब्द
और विस्तार पाता है मौन

बगैर खोए
जीवन भी कहाँ?

पृथ्वी में खो जाता है बीज
माटी को अर्थ देते हुए।

  • शुचि मिश्रा
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