किसान पिता और तेज़ हवा : शुचि मिश्रा | कविता | ShuchiMishraJaunpur

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उड़ उड़ गए
कपास के बगुले

बहुत तेज़
हवा चली

किसान पिता भी है
बेटी का

बगलें झाँक नहीं सकता
चाहे कितनी भी तेज़ हवा हो।

————–( शुचि मिश्रा, जौनपुर ) ———————-

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