लाश : शुचि मिश्रा | कविता | ShuchiMishraJaunpur

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लाश से बात करो सरकार
कहेगी वही सच्ची बात, धारदार
ज़िंदगी अब कुछ नहीं कहती

मूक हैं लोग
और लाश मुखर

क़त्ल की दास्तान कहती है लाश
स्थिर हैं आँखें लाश की
नज़रें मिलाकर बात करो उससे
पूछो क़ातिल का हुलिया
शिनाख़्त करो
अपने सिवाय सब पर करो शक़

हे सरकार!
जल्द पूछो लाश से और सुनो
नहीं तो सड़ जाएगी लाश
और चीख-चीख कर
बतलाएगी अपना दर्द

यह किसी पागल जानवर की लाश नहीं
उन्नीस सौ पचास की जनवरी में
छब्बीसवे दिन जन्मे विश्वास की लाश है सरकार।

————–( शुचि मिश्रा, जौनपुर ) ———————-

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