तुम कठिनतर प्रश्न : शुचि मिश्रा | कविता | ShuchiMishraJaunpur
हमेशा सरल सवालों को हल किया पहलेबचते-बचाते रहे कठिन सेसोचा हल कर लेंगे बाद मेंपहले दे लें सरल सरल जवाब…
Poetry/ Writer, Jaunpur (U.P)
हमेशा सरल सवालों को हल किया पहलेबचते-बचाते रहे कठिन सेसोचा हल कर लेंगे बाद मेंपहले दे लें सरल सरल जवाब…
गर्द के उड़ने का समय है यहविस्थापन पुराने पत्तों काकोंपलें और अनुभूत-पल्लव के स्थापन काहवाओं के मिज़ाज बदलने का भी…
लाश से बात करो सरकारकहेगी वही सच्ची बात, धारदारज़िंदगी अब कुछ नहीं कहती मूक हैं लोगऔर लाश मुखर क़त्ल की…
कहने सुनने के भीअजब नियम होते हैं सरकार बोल रहीजनता ख़ामोश है लेकिन जनता की आवाज़नारों में बदलती जा रहीऔर…
आओ दु:ख के दुर्ग को ढँहाकर आओअश्रुओं से बना है यह दुर्गजिसमें रह रही हूँ इन दिनों यूँ देखने में…
मिलो, जैसे मिलना ही चाहा होऔर मिलने के लिए आए हो दुनिया में नदी,पर्वत, हवा, धूप, बादल सेफूल-पत्ती, चिड़िया और…
देखते ही देखतेउमड़ घुमड़ कर आते बादलछा गए ऊपर देखते ही देखतेबरस गया पानीतृप्त हुई धरा देखते ही देखतेअंकुरित हुए…
रिश्ते नातेआते-जातेदिखे इमारत से ! जिनके बनने मेंलगता है अधिक समयकि लोग रहे अनजान,उन्हें पता क्याभव्य इमारतकैसे हुई महान? कितना…
भीतर आऊँ या न आऊँ? भ्रमित-सी हो गई हूँमैं तुम्हारी देहरी पर बावरी-सी हो गई हूँ। खींच लाई पीर जो…
मुझमें वितृष्णा होती तो मैंनेनफ़रत की होती आपसेबारहा लफ़्ज़ों के जरिएज़रूरी तौर पर भीकिंतु मुझे प्यार है आपसेऔर मेरे प्यार…