चुप्पी : शुचि मिश्रा | कविता | ShuchiMishraJaunpur

टीस जोदिल में उट्ठीरह गयीगंग-जमुनआँखों में आयीबह गयी रह गयीबह गयीयाद आतीऔर आते रह गयी हार बैठीसारी भाषाकहते-कहते दास्तां जोअनकही…

इतने सारे मुखौटों में : शुचि मिश्रा | कविता | ShuchiMishraJaunpur

आखिरकार तुम अपनेअसली रूप मेंआ ही गए सामने तुम्हारे स्वार्थ की आग मेंऔर तुम्हारी लिप्सा की आंच मेंझुलस गए तुम्हारे…

शुकदेव प्रसाद से मिलने : : शुचि मिश्रा | कविता | ShuchiMishraJaunpur

इलाहाबाद का विज्ञानयानी शुकदेव प्रसादछोटा बघाड़ा में स्थित मकानवृक्षों से घिरा ज्यों अमराई के बीच प्रासादमेरे मन में जब तब…

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