खड़ी होती हूँ फिर-फिर | माया एंजेलो | अनुवाद शुचि मिश्रा | ShuchiMishraJaunpur
जो विकृत और कड़वे झूठ हैं तुम्हारे पासनि:संदेह उनसे तुम ग़लत दर्ज करोगे मेरा इतिहासधूल में मिला सकते हो तुम…
Poetry/ Writer, Jaunpur (U.P)
जो विकृत और कड़वे झूठ हैं तुम्हारे पासनि:संदेह उनसे तुम ग़लत दर्ज करोगे मेरा इतिहासधूल में मिला सकते हो तुम…
हे भगवन, जब मैं मर जाऊँगा तब तुम क्या करोगे?क्या हुआ जो टूट गया मैं एक प्याला ही तो हूँ…
वह उठती है अलस्सुबहसुबह होने के पहलेकि उसी से होती है हर भोरचारों ओरफैलता है उजासजब वह उठती है तो…
आकाश दीखता है जितनाअनंत है उतनाअंतस में भी उतना ही अनंत आकाश एक तत्व है देह काअनंत भी हुआ एक…
एक गहरी रातनिस्तब्ध अंधेराउलझी अंगुलियाँअनकही बात एक गहरी रातमुंदी आँखेंकाँपते अधरठिठुरते गात एक गहरी रात कोआकृति देतीदो परछाई दूर-दूरबहुत दूर…
तनाव में जीती स्त्री के चेहरे सेउसका कोमल भाव बदल जाता है कठोरता मेंवह खतरनाक होती हैख़ुद लिए भी और…
आओ, समुद्र की लहरों पर स्केटिंग करेंउड़ान भरें एक शिखर से दूसरे शिखरनाप लें कदमताल करते धरती की परिधि आओ…
कविता की एक पंक्तिदूर तक फैली हैशांत-निस्तब्ध पंक्ति के साथ-साथविस्तृत होती हैरातसन्नाटा बुनते एकाकीपन कह रहा हैअपनी कथा-व्यथाखुद की आवाज़सुनते-गुनते।…
माँ आज भी जगाती हैसुबह सुबहचिड़ियो़ के चहचहाते हीएक गहरी नींद से माँ है तो सुबह होती हैमाँ के ना…
पलकें बंद करमैंने देखाउसेपूरे चाँद वाली रात मेंचुप-चुप वहताक रहा था चाँद एक मनुष्य केचकोर बन जाने की घटनाघट रही…