हृदय-द्वार : शुचि मिश्रा | कविता | ShuchiMishraJaunpur
आज फिरबंद किए हृदय-द्वार आज फिरविमुख हुआ मनसूना रह गया आँगन झरा अभी-अभीपीपल-पातरह गईसंध्या की अधूरीनिशा से बात आज फिररह…
Poetry/ Writer, Jaunpur (U.P)
आज फिरबंद किए हृदय-द्वार आज फिरविमुख हुआ मनसूना रह गया आँगन झरा अभी-अभीपीपल-पातरह गईसंध्या की अधूरीनिशा से बात आज फिररह…
समय सांझ कासुंदर दृश्य ! एक वृद्ध टहलतेघर की ओर लौटते …वृद्ध की उंगलियां थामेनन्हा पोता चल रहा है कौन-किसे…