(‘गुनाहों का देवता’ पढ़ते हुए)
सुनो बर्टी,
दफना दो उस पंछी को
जो संग रहा आया वर्षों
तुम्हारी दिनचर्या का हिस्सा
भूल जाओ सब कुछ
भुला दो
ख़त्म कर दो किस्सा
नहीं है रूमाल तुम्हारी जेब में
मांग लो चंदर से
विक्षिप्तों-सी करो हरकत
भूल जाओ मोहब्बत
कर दो दफ़्न
याद के उस पंछी को भी
जो फड़फड़ाता है
तुम्हारे ज़ेहन में
सुनो बर्टी,
इतना दफ़्न करने के
बाद जब तुम लौट रहे होंगे
तब मक्खी की तरह
एक गंध तुम्हारा पीछा करेगी
सुनो बर्टी,
प्यार को दफ़्न मत करो !
————–( शुचि मिश्रा, जौनपुर ) ———————-