ख़त पढ़ने का मेरा तरीक़ा है यह
सबसे पहले मैं दरवाजे़ पर ताला लगाती हूँ
और उसे खींचकर आश्वस्त होती हूँ
क्योंकि उसके बाद मज़ा आना तय है
किसी भी दस्तक़ को निस्तेज करने के लिए
मैं दूर जाकर बैठ जाती हूँ सबसे
फिर अपना छोटा-सा ख़त निकालती हूँ
और उसका बंध हटा देती हूँ धीरे-धीरे
फिर दीवार पर आँखें टिकाती हूँ
और उसके बाद फर्श पर…
भरोसा दिलाती हूँ
कि सारे चूहे भाग गए
पढ़कर सोचती हूँ कि कितनी अनंत हूँ
जैसा तुम जानते हो वह नहीं
आह भरती हूँ कि स्वर्ग नहीं मिला
लेकिन ईश्वर ने नहीं दिया वह; जो तुमने !
कविता : एमिली डिकिन्सन
अनुवाद : शुचि मिश्रा)