रेशम का कीड़ा : शुचि मिश्रा | कविता | ShuchiMishraJaunpur

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छत्तीसगढ़ यात्रा के दौरान
रेशम के बारे में जानते हुए मैंने जाना
रेशम की खेती करती
मुनिया के बारे में

मुनिया के बारे में जानते हुए मैंने जाना
उसके परिवार के बारे में

परिवार के बारे में जानते हुए जाना
कि क्यों कहते हैं
छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा

धान का कटोरा
कब रेशम का मर्तबान हो जाता है यह जाना मैंने
छत्तीसगढ़ यात्रा के दौरान

रेशम के मर्तबान को मुनिया देखती है

मुनिया देखती है रेशम का कीड़ा
वह रेशम का कीड़ा नहीं लार्वा देखती है

मुनिया लार्वा नहीं धागा देखती है
वह धागा नहीं उसकी लंबाई देखती है

मुनिया देखती है कि उसकी लंबाई लगभग एक हज़ार मीटर है

मुनिया रेशम के कीड़े को ठीक-ठीक देखती है
ऐन उसी वक़्त वह अपनी उम्र देखती है

मुनिया इसी वक़्त रेशम के कीड़े को
मरते हुए देखती है रेशम में
वह अपना मरना देखती है रेशम के कीड़े में !

————–( शुचि मिश्रा, जौनपुर ) ———————-

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