हे भगवन, जब मैं मर जाऊँगा तब तुम क्या करोगे?
क्या हुआ जो टूट गया मैं एक प्याला ही तो हूँ ?
मदिरा हूँ मैं तुम्हारी छलक गई तो क्या हुआ?
मैं तुम्हारा वस्त्र हूँ और व्यवसाय भी
मेरे खो जाने से खो दोगे तुम कीमत अपनी
कोई घर नहीं होगा तुम्हारा मेरे जाने की बाद
कि जहाँ कोई ग़र्मजोशी और अपनेपन के
प्यारे-प्यारे शब्दों से करे तुम्हारी अगुवानी
मैं मखमली जूती हूँ तुम्हारे पैर से उतरी
महान वस्त्रों ने जाने दिया तुम्हें
मैं तुम्हारा शाप झेलता हूँ ऊष्मा से भरा
अपने गाल पर तकिये की तरह
आएगा वो और मुझे देर तक खोजेगा
अनजान पठारों की गोद में
लेट जाएगा सूर्यास्त होते-होते
हे भगवन, मैं डर रहा हूँ कि तुम क्या करोगे
————–( शुचि मिश्रा, जौनपुर ) ———————-