जनता की रोटी है न्याय ० बैर्तोल्त ब्रेष्त | अनुवाद : शुचि मिश्रा | ShuchiMishraJaunpur

पर्याप्त-अपर्याप्त, स्वादिष्ट और स्वादहीन जो भी है जनता की रोटी है न्याय दुर्लभ होती है जब; भूख होती है तब…

अच्छी वजह से निष्कासन ० बैर्तोल्त ब्रेष्त | अनुवाद : शुचि मिश्रा | ShuchiMishraJaunpur

संपन्न घरों के बच्चों-सी हुई मेरी परवरिश गले में कॉलर बाँध माँ-पिता ने खूब ध्यान रखा लालन-पालन कर मुझे किया…

खड़ी होती हूँ फिर-फिर | माया एंजेलो | अनुवाद शुचि मिश्रा | ShuchiMishraJaunpur

जो विकृत और कड़वे झूठ हैं तुम्हारे पासनि:संदेह उनसे तुम ग़लत दर्ज करोगे मेरा इतिहासधूल में मिला सकते हो तुम…

मुमकिन : शुचि मिश्रा | कविता | ShuchiMishraJaunpur

एक गहरी रातनिस्तब्ध अंधेराउलझी अंगुलियाँअनकही बात एक गहरी रातमुंदी आँखेंकाँपते अधरठिठुरते गात एक गहरी रात कोआकृति देतीदो परछाई दूर-दूरबहुत दूर…

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