Author: Shuchi Mishra
मध्यांतर की अर्धनिद्रा ० डेविड श्मेट | अनुवाद : शुचि मिश्रा | ShuchiMishraJaunpur
जैसे पूरे ब्रह्मांड में एक सुराख़ खोजना हो जो किसी को न हो पता; ऐसा दरवाज़ा और खुल जाए वह…
जनता की रोटी है न्याय ० बैर्तोल्त ब्रेष्त | अनुवाद : शुचि मिश्रा | ShuchiMishraJaunpur
पर्याप्त-अपर्याप्त, स्वादिष्ट और स्वादहीन जो भी है जनता की रोटी है न्याय दुर्लभ होती है जब; भूख होती है तब…
अच्छी वजह से निष्कासन ० बैर्तोल्त ब्रेष्त | अनुवाद : शुचि मिश्रा | ShuchiMishraJaunpur
संपन्न घरों के बच्चों-सी हुई मेरी परवरिश गले में कॉलर बाँध माँ-पिता ने खूब ध्यान रखा लालन-पालन कर मुझे किया…
प्रेम करना ० नाज़िम हिक्रमत | अनुवाद : शुचि मिश्रा ||ShuchiMishraJaunpur
जैसे नमक के साथ रोटी खाना ठीक ऐसा ही है तुम्हें प्रेम करना ज्वर में जागना और चेहरे पर मारना…
खड़ी होती हूँ फिर-फिर | माया एंजेलो | अनुवाद शुचि मिश्रा | ShuchiMishraJaunpur
जो विकृत और कड़वे झूठ हैं तुम्हारे पासनि:संदेह उनसे तुम ग़लत दर्ज करोगे मेरा इतिहासधूल में मिला सकते हो तुम…
हे भगवन, क्या करोगे ! | रेनर मारिया रिल्के | अनुवाद शुचि मिश्रा | ShuchiMishraJaunpur
हे भगवन, जब मैं मर जाऊँगा तब तुम क्या करोगे?क्या हुआ जो टूट गया मैं एक प्याला ही तो हूँ…
रेखांकित करने वाली बात : शुचि मिश्रा | कविता | ShuchiMishraJaunpur
वह उठती है अलस्सुबहसुबह होने के पहलेकि उसी से होती है हर भोरचारों ओरफैलता है उजासजब वह उठती है तो…
आकाश देखना : शुचि मिश्रा | कविता | ShuchiMishraJaunpur
आकाश दीखता है जितनाअनंत है उतनाअंतस में भी उतना ही अनंत आकाश एक तत्व है देह काअनंत भी हुआ एक…
मुमकिन : शुचि मिश्रा | कविता | ShuchiMishraJaunpur
एक गहरी रातनिस्तब्ध अंधेराउलझी अंगुलियाँअनकही बात एक गहरी रातमुंदी आँखेंकाँपते अधरठिठुरते गात एक गहरी रात कोआकृति देतीदो परछाई दूर-दूरबहुत दूर…