मंज़िलें क्या हैं? ये पता रखना
चल पड़े हो तो हौसला रखना
आरज़ू दीखती है हद्दे-नज़र
मुश्किलों से क्या गिला रखना
एक इबादत के लिए उम्रे-नज़्र
सामने अपने इक ख़ुदा रखना
जिन चराग़ों से दिल जो रौशन हो
उन चराग़ों को तुम बचा रखना
जाने किस राह पर मिलें-बिछड़े
अपनी आँखों में कुछ हया रखना ।।
(शुचि मिश्रा)