भविष्य अंतरिक्ष है वैसे
जैसे गगन का रंग
नीर और पवन का रंग
स्याह है यह अंतरिक्ष :
जैसे सपनों के लिए जगह
जैसे उज्जवल अंतरिक्ष :
बर्फीले संगीत हेतु स्थान वह
निराश प्रेम में चुंबन के लिए
वह जगह नहीं जो पीछे छूटी
जंगलों, सड़कों और निवासों में
कोई-कोई जगह सभी के लिए
भूमि के भीतर और सागर के
पानी के नीचे एक अंतरिक्ष है
किंतु कितना खुशीभरा है अंत में
यह उठते हुए खाली ग्रह को पाना
विशाल नक्षत्र, वोद्का की तरह साफ़
इतने पार देखे जाने वाले लोगविहीन
जहाँ दूरभाष के साथ पहुँचना पहले
कि इतने सारे व्यक्ति फिर पहुँचकर
बहस करें वे अपनी कमजोरियों पर
ख़ास है कि हमें अपना इल्म रहे बमुश्किल
हम असमतल पर्वत-श्रृंखला से चीखें
और उस स्त्री के पैर देखें
जो अभी-अभी पहुँची है चोटी पर
आओ, पार करें यह घुटनभरी वैतरणी
जहाँ हम सुबह से रात तक सरकती
दूसरी मछलियों के संग तैरते हैं
और अंततः हमें भान होता है
अंतरिक्ष में …उस अनंत छोर
हम उड़ें एक अछूते एकांत की ओर !
- पाब्लो नेरुदा
————–( अनुवाद : शुचि मिश्रा, जौनपुर ) ———————-